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संगीत का इतिहास

संगीत की उत्पत्ति  कब और कैसे हुई  इसके  बारे में विभिन्न विद्वानों ने अपने -अपने  धार्मिक , मनो वैज्ञानिक तथा प्राकृतिक आधार पर इसकी व्याख्या की है | हम यहाँ पर  प्राकृतिक , धार्मिक  तथा मनोवैज्ञानिक आधार पर  संगीत की उत्पत्ति के बारे में  प्रकाश डालने का प्रयास  करेंगे।

1.1 प्राकृतिक  दृष्टिकोण

अनेक विद्वानों ने प्रकृति को संगीत की आत्मा कहा है., हिंदी साहित्य के अनुसार विभिन्न पशु पक्षियों के ध्वनि के आधार  पर संगीत के सात सुरों की रचना हुई। पंडित दामोदर के अनुसार:-

मोर से  षड्ज, चातक से ऋषभ, बकरा से गन्धार, क्रौंच पक्षी से मध्यम, कोयल से पंचम, मेंढक  से धैवत, और हाथी सी निषाद की उत्पत्ती मानी गई है तथा मतंग ऋषि कृत वृहददेशी में भी लिखा गया है की-

” षड्ज वदती मयूर, ऋषभ चातको वदेतु

अंजा वदिति गांधार, क्रौंच वदती मध्यमा:

पुष्प साधारण काले कोकिल पंचमो वदेतु

प्रवर्तकाले तू संतप्राप्ते धैवत द्रदशे वदेतु

सर्वदा चा तथा देवी निषाद वदेतु -गज:”

इसी सम्बन्ध में फ्रांस में एक किवदंती प्रचलित है कि- कोहकाफ़ नाम के एक पर्वत पर एक पक्षी रहता था जिसके चोंच में सात क्षिद्र होते थे ,जिनसे हवा के प्रभाव से सात प्रकार कि ध्वनियाँ निकलती थी , जिसे आगे चलकर संगीत के सात स्वर माने गए |

इस   पक्षी  को  फ्रांस में अतिशजन तथा यूनान में फैनिक्स कहते थे  लेकिन आज इस तरह  की कोई भी पक्षी या कोई अन्य जानकारी नहीं मिलती है

इसी क्रम में अरब के सुप्रसिद्ध इतिहासकार  ओलासिनिज्म  ने  भी अपनी पुस्तक “” विश्व  का संगीत “” नामक पुस्तक में संगीत की उत्तपत्ति  बुलबुल नामक पक्षी से की है|

1.2 धार्मिक दृष्टिकोण

संगीत के जन्म के विषय में अनेको विदवानों ने अपनी – अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार  अपने विचार व्यक्त  किये है ,

हिन्दू धर्म के अनुसार संगीत की उत्तपत्ति  भगवान ब्रह्मा के द्वारा हुआ है, ब्रह्मा  जी ने यह कला भगवान शिव को और शिव  जी ने माँ सरस्वती जी को दिया।   जिसके बाद माँ सरस्वती ने  संगीत कला का ज्ञान नारद ऋषि  जी को दिया , नारद जी ने स्वर्ग के गन्धर्व ,  किन्नर और अप्सराओं को  इस विद्या का ज्ञान दिया ।  वहाँ से ही  भारत मुनि , हनुमान आदि  ऋषियों ने इस कलां में पारंगत होकर धरती पर इस कला का प्रचार और प्रसार किया।

लेकिन पंडित अहोबल  के अनुसार ब्रह्मा जी  के द्वारा  भरत मुनि  को संगीत की शिक्षा प्राप्त हुई, तथा  पंडित दामोदर ने भी संगीत का आरम्भ ब्रह्मा जी के द्वारा ही माना है |

एक अन्य ग्रन्थ के अनुसार , नारद जी कई वर्षो तक योग साधना किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान  शिव ने  नारद जी को संगीत की शिक्षा दिया और  माँ पार्वती जी के शयन मुद्रा को देखकर , उनके अंग -प्रत्यंगो के आधार पर रूद्र वीणा बनायीं , और अपने पांच मुखों के पांच रागो की उत्तपत्ति की  तत्पश्चात  पार्वती जी के मुख से छठा राग की उत्पत्ति हुई ,

चूकि शिव जी मुख पूरब, पश्चिम , उत्तर , दक्षिण और आकाशोन्मुख होने से क्रमश पांच  राग भैरव , हिंडोल, मेघ , दीपक और श्रीराग की उत्पत्ति हुई था पार्वती जी के मुख से कौशि राग की उत्पत्ति हुई।

ओउम(ॐ)

कुछ विद्वानों ने संगीत की उत्पत्ति ओउम  से मानी है , ओउम अपने अंदर तीन शक्तियों और शब्द को समाहित किये हुए है, अ, उ , म।

अ शब्द जन्म व्  उत्पत्ति का प्रतीक माना गया है , ”उ ”  धारक व रक्षा का प्रतीक माना गया है एवं  ”म ” शब्द विलय का प्रतीक माना गया है। ओउम  वेदों का बीज मंत्र भी है और  इस प्रकार देखा जाए तो ओउम मंत्र  से ही  सृष्टि  की  उत्पत्ति  हुई और इसी से ही नाद की उत्पत्ति हुई , इस प्रकार नाद और शब्द दोनों की उत्पत्ति  ओउम  से मानी गयी है |

1.3 मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

संगीत के जन्म के सम्बन्ध में यूरोप के विचारको का मत अधिक दृष्टिगोचर होता है ,

जैम्स लौंग  के अनुसार – मनुष्य ने पहले चलना , बोलना , हँसाना , रोना आदि क्रियाएं सीखी , तत्पश्चात अपने भावों को अभिव्यक्त करने लिए संगीत की उत्पत्ति हुई, कुछ विद्वानों ने यह भी माना है की मनुष्य ने वभिन्न ध्वनि को नक़ल करके  अपने भावों को अभिव्यक्त किया , और समय के साथ परिवर्तित होकर यह संगीत के स्वर बन गए। वैज्ञानिक दृष्टि से संगीत के उत्पत्ति ध्वनि आंदोलन के परिणाम सवरूप होता है, जब दो वस्तुएं आपस में टकराती है तो आस- पास की वायु को आंदोलित करती है।  यही कम्पन हमारे कनकेन्द्रिय को स्पंदित करती है , जिससे हमारी चेतना को ध्वनि का अनुभव होता है।  इस ध्वनि में से जो ध्वनि सुनने में हमारे कानों के अच्छे लगे , उसे संगीत उपयोगी ध्वनि मानी गयी ।

इस प्रकार से हम देखते है की प्राकृतिक , धार्मिक, तथा मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से  जितने भी अभिमत प्राप्त हुए है, उनका पूर्ण रूप से कोई प्रभाव नहीं मिलता है ,तथा मनुष्य ने वभिन्न पशु- पक्षियों की आवाज , दो वस्तुओ की टकराने की ध्वनि इत्यादि ध्वनि की प्रेरणा से वभिन्न प्रकार की ध्वनि को निकलने की कोशिश किया। जिसके प्रयत्न से संगीत की प्रारंभिक रूप का विकास हुआ।

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