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आज कल की संगीत अकादमी या संगीत स्कूल और घरानेदार संगीत शिक्षा में क्या अंतर है ?

मेर हिसाब अगर हम ध्यान से इस बार में सोचे तो दोने के अपने फायदे और नुकसान है, घरानेदार म्यूजिक शिक्षा का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये था का लोग गुरु के पास सालो-साल रहकर संगीत की छोटी से छोटी जानकारी के बारे में जान पाते थे, क्यों की जब गुरु आपको एक बार शिष्य के रूप में आपको स्वीकार कर लेते थे तो गुरु की ये जिम्मेदारी हो जाती थी वो आपको संगीत की शिक्षा में सब कुछ दे दे जो उनको पास है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह थी की आप गुरु से मिले कैसे, अगर मिल भी गए तो ये जरुरी नहीं था की आपको संगीत के शिक्षा दे की न दे , क्यूंकि अधिकतर गुरु या तो वो अपने बेटा -बेटी अपने दामाद या अपने रिश्तेदारों को ही संगीत की शिक्षा दिया करते थे , जितने की मैंने जाना है की गुरु- शिष्य परम्परा और घराने दार परम्परा का चलन मुग़ल काल से ज्यादा प्रचलित हुआ है इस काल में अधिकांश अच्छे कलाकार मुग़ल दरबार में संगीतज्ञ थे क्यों की वो दरबार के संगीतज्ञ होने के कारन उनके जीवन -यापन का खर्च भी दरबार की ओर से किया जाता था और चूकि वो दरबार में रहते थे तो उनसे आम लोगो का मिलना भी मुश्किल हो जाता था, यही कारन हो सकता है की घरानेदार संगीत पद्दत्ति में आम लोगो के लिए संगीत सीखना मुश्किल हो गया था जिसका ये नुकसान हुआ की लोगो को इंडियन क्लासिकल म्यूजिक अथवा म्यूजिक से दूरी बढ़ती चली गयी।

आज कल की संगीत अकादमी अथवा संगीत स्कूल का चलन आ जाने से सबसे बड़ा फायदा ये हुआ की अब लोग फिर से संगीत के सुर और ताल के बारे में धीरे – धीरे जानने लगे है या फिर जानने की कोशिस कर रहे है क्यों की जब तक हम किसी भी चीज की बेसिक जानकरी न हो तो हम उसकी उपयोगिता के बारे में कैसे जान सकते है , और जैसे की समय के साथ – साथ सभी चीजे बदलती है उसी प्रकार इस भाग- दौर की दुनियां में संगीत ने भी अपने स्थान गुरु- शिष्य परम्परा से बदल कर संगीत अकादमी और म्यूजिक स्कूल में परिवर्तित हो गया है, इसका ये नुकसान तो जरूर हुआ की अच्छे कलाकार जो की हमारी पुरानी विरासत को संभाल सके उसमे कमी आ सकती है, लेकिन ये भी सच है की अब म्यूजिक केवल दरबार में न रह कर आम- लोगो के बीच फिर से वापस आ गया है।

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